सुन तो जरा.....
ए अल्हड़ अक्खड़ बेबाक बेपरवाह बेसब्र लड़की !!!
तू समझती नहीं मानती नहीं क्यों समाज का चिंतन
क्यों व्यर्थ तर्कों में उलझा रहता तेरा ये चंचल मन
बंदिश दविश कोई भी कितनी भी होती नहीं बुरी।
तेरी इज़्ज़त की रखवाली को सब है बढ़ा जरूरी।
फिर क्यूँ आतुर करने को तू दूर हर एक सुबंधन।
क्यूँ आशा से अपनों को तकती तेरी व्यग्र चितवन।
मानव नहीं तू मानक है, मनु सभ्यता की वाहक है।
पुण्य पुनीत पवित्र पुरातन संस्कृति की तू ही ग्राहक है।
ये नीति ये रीति ये प्रथा ये विश्वास......
देख सभी हैं तेरे लिए, तुझसे ही, बस तुझमें ही उत्पन्न।
फिर क्यूँ होती अधीर तू करने को इनका समापन।
गरल समझ तू तजती जिसको कथित मधुसरोवर है।
चिंता करती किस बात की, तू तो चिर रक्षित धरोहर है।
तेरी रक्षा तेरी शिक्षा तेरा लिवास तेरा आवास....
ज्वलंत प्रश्न यही शेष बस, यही समाज का चिर मंथन।
फिर क्यों व्यथा लालसा क्यों,क्यों मन में ये नितग्रंथन।
अन्याय समझ नकारे जो ,तेरी जाति ही उसकी पोषक है।
किससे बचना चाहे अब, जब रक्षक ही तेरा शोषक है।
तेरी माता तेरे पिता तेरे भ्राता तेरी बहिन.....
पैसे देकर, तुझे दान करते,, अस्तित्व का तेरे कर भ्रंसन।
याचक को बना नियंता तेरा, कर देते तेरा अवमूल्यन।।
.........success
ए अल्हड़ अक्खड़ बेबाक बेपरवाह बेसब्र लड़की !!!
तू समझती नहीं मानती नहीं क्यों समाज का चिंतन
क्यों व्यर्थ तर्कों में उलझा रहता तेरा ये चंचल मन
बंदिश दविश कोई भी कितनी भी होती नहीं बुरी।
तेरी इज़्ज़त की रखवाली को सब है बढ़ा जरूरी।
फिर क्यूँ आतुर करने को तू दूर हर एक सुबंधन।
क्यूँ आशा से अपनों को तकती तेरी व्यग्र चितवन।
मानव नहीं तू मानक है, मनु सभ्यता की वाहक है।
पुण्य पुनीत पवित्र पुरातन संस्कृति की तू ही ग्राहक है।
ये नीति ये रीति ये प्रथा ये विश्वास......
देख सभी हैं तेरे लिए, तुझसे ही, बस तुझमें ही उत्पन्न।
फिर क्यूँ होती अधीर तू करने को इनका समापन।
गरल समझ तू तजती जिसको कथित मधुसरोवर है।
चिंता करती किस बात की, तू तो चिर रक्षित धरोहर है।
तेरी रक्षा तेरी शिक्षा तेरा लिवास तेरा आवास....
ज्वलंत प्रश्न यही शेष बस, यही समाज का चिर मंथन।
फिर क्यों व्यथा लालसा क्यों,क्यों मन में ये नितग्रंथन।
अन्याय समझ नकारे जो ,तेरी जाति ही उसकी पोषक है।
किससे बचना चाहे अब, जब रक्षक ही तेरा शोषक है।
तेरी माता तेरे पिता तेरे भ्राता तेरी बहिन.....
पैसे देकर, तुझे दान करते,, अस्तित्व का तेरे कर भ्रंसन।
याचक को बना नियंता तेरा, कर देते तेरा अवमूल्यन।।
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